Shiv Manas Puja
Shiv Manas Puja: शिवमानसपूजा आदि शंकराचार्य जी की सुंदर रचनाओं में से एक है । हिन्दू शास्त्र में पूजा की अनेक विधियां बताई गयी है और उस पूजा को और ज्यादा प्रभावशाली बनाने के लिए एक ऐसा उपाय बतया गया है जिसका नाम है मानसपूजा । मानसपूजा के माध्यम से भगवान शिव की सुंदर रूप की पूजा किया जाता है ।
जब हमारे पास किसी भी प्रकार की कोई भी सामग्री उपलब्ध न हो तभि शिवमानसपूजा स्तोत्र का पठन के वक्त उसके अर्थ के द्वारा हम भगवान शिव की सर्वोत्तम पूजा बस अपने मन की रचनाओं के द्वारा कर सकते हैं । अगर आप इसका पठन करते – करते उन सभी वस्तुओं का मानसिक चयन करोगे तो आप भी स्तोत्र की सुंदरता को अधिक अच्छे से जान पाओगे तो आइए आज इस मानस पूजा का स्तोत्र जानकर उस का आनंद लेते हैं तो यह स्तोत्र कुछ इस प्रकार है ।
Shiv Manas Puja
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शिव मानस पूजा स्तोत्र
रत्नैः कल्पितमासनं हिमजलैः स्नानं च दिव्याम्बरं।
नाना रत्न विभूषितं मृग मदामोदांकितं चंदनम्॥१॥
जाती चम्पक बिल्वपत्र रचितं पुष्पं च धूपं तथा।
दीपं देव दयानिधे पशुपते हृत्कल्पितं गृह्यताम्॥२॥
सौवर्णे नवरत्न खंडरचिते पात्र धृतं पायसं।
भक्ष्मं पंचविधं पयोदधि युतं रम्भाफलं पानकम्॥
शाका नाम युतं जलं रुचिकरं कर्पूर खंडौज्ज्वलं।
ताम्बूलं मनसा मया विरचितं भक्त्या प्रभो स्वीकुरु॥३॥
छत्रं चामर योर्युगं व्यजनकं चादर्शकं निमलं।
वीणा भेरि मृदंग काहलकला गीतं च नृत्यं तथा॥
साष्टांग प्रणतिः स्तुति-र्बहुविधा ह्येतत्समस्तं ममा।
संकल्पेन समर्पितं तव विभो पूजां गृहाण प्रभो॥४॥
आत्मा त्वं गिरिजा मतिः सहचराः प्राणाः शरीरं गृहं।
पूजा ते विषयोपभोगरचना निद्रा समाधिस्थितिः॥
संचारः पदयोः प्रदक्षिणविधिः स्तोत्राणि सर्वा गिरो।
यद्यत्कर्म करोमि तत्तदखिलं शम्भो तवाराधनम्॥४॥
कर चरण कृतं वाक्कायजं कर्मजं वा श्रवणनयनजं वा मानसं वापराधम्।
विहितमविहितं वा सर्वमेतत्क्षमस्व जय जय करणाब्धे श्री महादेव शम्भो॥५॥
Shiv Manas Puja
शिव मानस पूजा का भावार्थ:
मेरा मन इस प्रकार भावना करता है कि हे पशुपति देव! आप सम्पूर्ण रत्नों से निर्मित इस सिंहासन पर विराजित हों। मैं आपको हिमालय के शीतल जल से स्नान करवा रहा हूँ। स्नान के बाद आपको रत्नों से जड़ित दिव्य वस्त्र अर्पित हैं। मैं आपके अंगों पर केसर-कस्तूरी से बनाया गया चंदन का तिलक लगा रहा हूँ। जूही, चंपा, बिल्वपत्र आदि के फूलों का होमयज्ञ आपको समर्पित है। मैं आपको मानसिक रूप से सुगंधित धूप और दीपक के द्वारा दर्शित करवा रहा हूँ, आपकी स्वीकृति कीजिए।
मैंने नवीन स्वर्णपात्र में जो विभिन्न प्रकार के रत्न जड़े हैं, उनके साथ खीर, दूध और दही सहित पांच प्रकार के स्वादिष्ट व्यंजन, केले का फल, शरबत, सब्जी, कपूर से सुगंधित और सुशोभित मृदु जल और ताम्बूल मानसिक भावों से तैयार करके प्रस्तुत किया है। हे कल्याणकारी भगवान! कृपया मेरी यह भावना स्वीकार करें।
हे भगवान, मैं आपके ऊपर छत्र और पंखा झल रहा हूँ। निर्मल दर्पण आपका सुंदरतम और महिमामयी स्वरूप प्रदर्शित कर रहा है। वीणा, भेरी, मृदंग, दुन्दुभि आदि के मधुर स्वर संगीत आपको प्रसन्नता के लिए बजाए जा रहे हैं। मैं आपको स्तुति के गान, आपके प्रिय नृत्य के द्वारा साष्टांग प्रणाम करके समर्पित हो रहा हूँ। हे प्रभु! कृपया मेरी यह नाना विधि से स्तुति की पूजा को ग्रहण करें।
हे शंकरजी, मेरी आत्मा आप हैं। मेरी बुद्धि आपकी शक्ति पार्वतीजी हैं। मेरे प्राण आपके गण हैं। मेरा यह पंचभौतिक शरीर आपका मंदिर है। सभी विषय भोगों की रचना आपकी पूजा ही है। मैं जब सोता हूँ, तब वह आपकी ध्यान समाधि है। मेरा चलना-फिरना आपकी परिक्रमा है। मेरी वाणी से निकले हर उच्चारण आपके स्तोत्र और मंत्र हैं। इस प्रकार मैं आपकी भक्ति जिस-जिस कर्म के माध्यम से करता हूँ, वह आपकी आराधना ही है।
हे परमेश्वर! मैंने अब तक जो अपराध हाथ, पैर, वाणी, शरीर, कर्म, कर्ण, नेत्र या मन के माध्यम से किए हैं, वे सभी विहित या अविहित हों, आपकी क्षमापूर्ण दृष्टि को ध्यान में रखते हुए, कृपा कर उन्हें क्षमा करें। हे करुणा के सागर भोले भंडारी श्री महादेवजी, आपकी जय हो। जय हो।
इस प्रकार, यह सुंदर भावनात्मक स्तुति द्वारा हम मानसिक शांति के साथ-साथ ईश्वर की कृपा को बिना किसी साधन के प्राप्त कर सकते हैं। इस मानसिक पूजा को शास्त्रों में श्रेष्ठ पूजा के रूप में वर्णित किया गया है। इस शिव मानस पूजा के अनुभव से मनुष्य को निरंतर दिव्य प्रसाद प्राप्त करने की आवश्यकता है।
शिव मानसपूजा स्त्रोत अंग्रेजी में
Ratnaih kalpitamāsanaṁ himajalaiḥ snānaṁ cha divyāmbaraṁ।
Nānā ratna vibhūṣhitam mṛga madāmodāṁkitam chandanam॥
Jātī champaka bilvapatra rachitam puṣpam cha dhūpam tathā।
Dīpam deva dayānidhe paśupate hṛtkalpitam gṛhyatām॥1॥
Sauvarṇe navaratna khaṁdarachite pātra dhṛitam pāyasaṁ।
Bhakṣhaṁ pañchavidhaṁ payodadhi yutaṁ rambhāphalaṁ pānakam॥
Śākā nāma yutaṁ jalaṁ ruchikaraṁ karpoora khaṁdaujjvalaṁ।
Tāmbūlaṁ manasā mayā virachitam bhaktyā prabho svīkurū॥2॥
Chhatraṁ chāmara yoryugaṁ vyajanakaṁ chādarśakaṁ nimalaṁ।
Vīṇā bheri mṛdaṁga kāhalakalā gītaṁ cha nṛtyaṁ tathā॥
Sāṣṭāṅga praṇatiḥ stuti-rbahuvidhā hyetatsamastaṁ mamā।
Saṁkalpena samarpitaṁ tava vibho pūjāṁ gṛhāṇa prabho॥3॥
Saṁchāraḥ padyoḥ pradakṣiṇavidhiḥ stotrāṇi sarvā giro।
Yadyat karma karomi tattadakhilaṁ śambho tavārādhanam॥4॥
मानसपूजा क्या है
मानसपूजा यानि मानसिक पूजा का महत्व पुराणों में विशेष रूप से बताया गया है । यह पूजा की ऐसी विधि है जिसमें आप किसी भी स्थान या किसी भी समय में बैठकर भगवान की मानसिक पूजा कर सकते हैं । पूजा की दो विधि होती है एक वाह्यविधि और दूसरी आंतरिक विधि ।
वाह्यविधि से तात्पर्य है कि हम भगवान की भौतिक रूप से पूजा करें और भौतिक साधनों के साथ विधि-विधान से जब हम पूजा करते हैं तो उसे वाह्यविधि पूजा कहते हैं । लेकिन आंतरिक पूजा या मानसिक पूजा बह होती है जिसमें मनुष्य अपने मन के अंदर उन्हें भौतिक पदार्थों की कल्पना करके और उसी तरह के विधि-विधान से भगवान की पूजा करें ।
मानसपूजा का महत्व
अगर आप किसी ऐसे स्थान पर हैं जहां आप अपनी पूजा पूर्ण विधि अनुसार और पूर्ण सामग्री के साथ नहीं कर सकते तो वहां पर मानसिक पूजा का बहुत महत्व है । जिस प्रकार आप भौतिक रूप से रोज पूजा करते हैं जिन जिन पदार्थों को आप भगवान को समर्पित करते हैं बिल्कुल उसी तरह से आप अपने मन में भगवान उन्हीं सभी सामग्रियों को समर्पित कर सकते हैं। कल्पना के माध्यम से और भगवान की उसे रूप में पूजा कर सकते हैं और इस पूजा को प्रभु पूर्ण तरह स्वीकार करते हैं । अपनी रोज की पूजा से पहले भी आप इस मानसिक पूजा को कर सकते हैं जिसे हम पूजा की भीतरी तैयारी भी कह सकते हैं।
शास्त्रों में पूजा को हजार गुना अधिक महत्वपूर्ण बनाने के लिए एक उपाय बताया गया है वह है मानस पूजा। जिसे पूजा से पहले करके फिर बाहरी वस्तुओं से पूजन करें । नारद जी ने भी नारद पुराण में मानस फूल को ही सर्वश्रेष्ठ बताया है । जिसमें कहा है कि अगर मन से कल्पित एक भी पुष्प प्रभु को चढ़ा दिया जाए तो करोड़ों बाहरी फूल चढ़ाने के बराबर होता है ।
इसी प्रकार मानस चंदन धूप दीप नैवेद्य भी भगवान को करोड़ गुना अधिक संतोष दे सकेंगे । इसीलिए मानस पूजा का बहुत अधिक महत्व है कहा जाता है कि भगवान तो भाव के भूखे हैं संसार में ऐसे दिव्य पदार्थ उपलब्ध ही नहीं है । जिनसे परमेश्वर की पूजा की जा सके इसलिए पुराणों में मानस पूजा का विशेष महत्व बताया गया है ।
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