Mandaragiri Hill
Mandaragiri Hill: कर्नाटका के राजधानी बेंगलुरु शहर से लगभग 15 किलोमीटर दूरी पर महेंद्रगिरी पहाड़. यह जगह बेंगलुरु शहर के प्रसिद्ध पर्यटन स्थान है. इस पहाड़ को उड़ीसा का द्वितीय महेंद्र गिरी पर्वत भी कहा जाता है. वहां का खूबसूरत नजारा और प्राकृतिक वातावरण क्या है? महेंद्र गिरी पर्वत का विशेष तात्पर्य क्या है? इन सभी विषयों को जानने के लिए इस पोस्ट के अंत तक अध्ययन करें.
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Rocky Mountain
Rocky Mountain: महेंद्र पर्वत माला एक अनोखी और सुंदर पर्वत श्रृंखला है . यहां पर एक बड़ा सा रॉकी माउंटेन है जिसे स्थानीय भाषा में सीड़ी कहते हैं. जो ऊपर तक जाता है. ऊपर पहुंचने पर आपको छोटा सा एक मंदिर देखने के लिए मिलेगा. जहां से आपको एक सुंदर सा झील देखने के लिए मिलता है. उसके साथ ही उस इलाका का प्राकृतिक सुंदरता को अनुभव करने का समय मिलता है.
Mandaragiri Hill
chandranatha thirthankara statue
chandranatha thirthankara statue: यहां पर सबसे प्राचीन और बड़े प्रतिमा है जोकि पत्थर से बनाई गई है चंद्रनाथ तीर्थंकर प्रतिमा. यह प्रतिमा महेंद्र गिरी पर्वत के पास में ही स्थित है. इस प्रतिमा की उच्चतर लगभग 57 फीट है.चंद्रनाथ तीर्थंकर प्रतिमा पहाड़ के साथ है जो कि आप चारों तरफ कैमरे के माध्यम से देख सकते हैं. यह चित्र पहाड़ियों से घिरा हुआ है. और इतना सुंदर दृश्य शायद और कोई नहीं देखा होगा ऐसे विशाल प्रतिमा और इसका इतिहास.
और एक खास सुंदर दृश्य है ध्यान केंद्र. यहां पर रोज ध्यान और प्रवचन होता है. यहां पर जो ध्यान केंद्र बना हुआ है वह मयूर के पंखे जैसा बना हुआ है. जिसका सुंदरता को देखने के लिए काफी पर्यटकों की भीड़ लगती है.
Mandaragiri Hill
History of Mandaragiri Hill
History of Mandaragiri Hill: तीन शीलाओ से निर्मित महेंद्र गिरी पर्वत. रामायण में वर्णित महेंद्र पर्वत जिस पर भगवान परशुराम तपस्या करते थे. हनुमान और अश्वत्थामा की तरह परशुराम जी भी चिरंजीवी है. और इनकी आज भी धरती पर मौजूद होने से कोई प्रमाणित वस्तुएं एक जगह में बिखरे हुए. यह कहानी उसी जगह से जुड़ी हुई है महेंद्र गिरी पर्वत . यह पर्वत आपने आपके और कई रहस्य से जुड़े हुए हैं पर्वत.
यह पर्वत ऐतिहासिक और धार्मिक नजरिया होने से काफी महत्व रखता है. ऐसी मान्यता है की यह पर्वत रामायण महाभारत काल की कई कथाओं से जुड़ा हुआ है. इस पर्वत के बारे में सबसे अधिक प्रचलित कहानी के अनुसार अंत में भगवान परशुराम तपस्या के लिए यही चले गए थे.
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